रविवार, 24 मई 2015

त्रासदी

जीवन कुछ अलग सा अपना सा है.. त्रासदी होना तब अच्छा है, जब आप अपने जीवन को किसी कला को समर्पित करदे.. अनुभव से उत्पन्न भावों के मिश्रण में जब व्यक्ति घुल जाता है, एक विचार उभर कर आ जाना संभव है.. जीवन की विडंबना है कि हर एक का जीवन दुःख का भोगी है, हम मानुष कहीं न कहीं भावों में एक दुसरे से बहुत जुड़ जाते है, आसक्त होकर भक्त से भी बन जाते हैं.. पर मेरी आँखें कईं बार कुछ और देख लेती हैं, अब उसे मैं सत्य कहूँ, अनुभव कहूँ, विचार कहूँ या भाव कहूँ , ये कहना बहुत कठिन है.. एक टीस जैसे उभर जाती है मन में, हलचल सा हो जाता है मन.. मैंने भक्ति तो देखी है, पर अनोखी सी देखि है.. हम आकार और निराकार की भक्ति करने वाले मनुष्य, एक दुसरे को भी आकार और निराकार रूप में भक्त समझते है.. आकार से मेरा यहाँ अर्थ है कोई नामी व्यक्ति और निराकार से मेरा अर्थ है नामी व्यक्ति पर नाम न होना.. आकार को मूर्ति बनाने में और फिर हवन वे पूजा करने में हमे एकदम समय नही लगता, अब निराकार से आप क्या समझेंगे? निराकार है एक खंडित मूर्ती जिसके टूट जाने के बाद उसका कोई अस्तित्व नही बचता. हमारे समाज में निराकार वो व्यक्ति है जो सबका सहायक होता है अर्थात आकार को आकार देने वाला. आकार देने वाला निराकार है और असल में निराकार ही आकार है.. भक्ति दोनों की बराबर है पर नाम देने वाला दूसरों को, यहाँ बड़ा बदनाम है..  जीवन में सहायक का होना आशीर्वाद है,

जो भी सहायता करे वह मूरत बनें
अस्तित्व रहे स्थित उसका
जीवन पहचान बने..

सुरभि सप्रू